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    नदियों को परस्पर जोड़ना

    नदियों को परस्पर जोड़ना (आईएलआर) कार्यक्रम की उपलब्धियाँ

    1. जल संसाधन मंत्रालय द्वारा तैयारी की गई राष्ट्रीय संदर्शी योजना (एनपीपी) के अंतर्गत एनडब्ल्यूडीए ने क्षेत्रीय सर्वेक्षण और जांच तथा व्यापक अध्ययन के आधार पर अंतर बेसिन अंतरण हेतु हिमालयी नदी घटक के अंतर्गत 14 लिंक और प्रायद्वीपीय नदी घटक के अंतर्गत 16 लिेंको की पहचान की है।
    2. इनमें से प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत 14 लिंकों और हिमालयी घटक के अंतर्गत 2 लिकों (भारत के भाग में) के बारे में व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार कर ली गई है

    आईएलआर के लिए विशेष समिति

    माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णयानुसार आईएलआर के संबंध में 16 जुलाई, 2014 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल को एक कैबिनेट नोट प्रस्तुत किया गया था।
    1) केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 24 जुलाई, 2014 को हुई अपनी बैठक में आईएलआर के लिए एक विशेष समिति के गठन को स्वीकृति दी थी।
    2) तदनुसार, माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार 25 सितम्बर, 2014 के आदेश के अंतर्गत आईएलआर संबंधी एक विशेष समिति का गठन किया गया।

    अभी तक आईएलआर संबंधी विशेष समिति की नई दिल्ली में 17 अक्तूबर, 2014, 6 जनवरी, 2015, 19 मार्च, 2015, 14 मई, 2015, 13 जुलाई, 2015, 15 सितम्बर, 2015, 18 नवम्बर, 2015 और 8 फरवरी, 2016 को आठ बैठकें हो चुकी हैं। समिति सभी हितधारकों के मतों पर विचार करने के पश्चात विचारार्थ विषय के अनुसार नदियों को परस्पर जोडने के उद्देश्य को तेजी से पूरा करने हेतु आगे बढ रही है। वैकल्पिक योजनाओं को विकास करके और परिपक्व परियोजनाओं को लागू करने हेतु रोडमैप तैयार करके सहमति बनाने का काम किया जा रहा है।

    विशेष समिति के बैठकों के दौरान लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय
    आईएलआर संबंधी विशेष समिति की पहली बैठक में निम्नलिखित चार उप-समितियाँ बनाने के निर्णय लिया गया-
    1. विभिन्न अध्ययनों/ रिपोर्टों का व्यापक मूल्यांकन करने संबंधी उप-समिति
    2. सर्वाधिक उपयुक्त वैकल्पिक योजना की पहचान हेतु प्रणालीगत अध्ययन करने संबंधी उप-समिति
    3. बातचीत के माध्यम से सहमति बनाने तथा संबंधित राज्यों के बीच समझौता कराने संबंधी उप-समिति और
    4. राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) का पुनर्गठन करने संबंधी उप-समिति।

    इस उप-समिति की कई बैठकें हुई और इसने 21.9.2015 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है।
    शेष तीन उप-समितियों की बैठकें नियमित रूप से आयोजित की जा रही हैं और उनका कार्य प्रगति पर है।

    आईएलआर हेतु कृतक बल

    मंत्रालय द्वारा आईएलआर संबंधी कृतक बल का 13 अप्रैल, 2015 को गठन किया गया जो विशेष समिति का गठन करते समय मंत्रिमंडल द्वारा यथा-निर्देशित विशेषज्ञ समिति की आवश्यकता को भी पूरा करेगी। कृतक बल की 23 अप्रैल, 2015 और 05 नवम्बर, 2015 को दो बैठकें हो चुकी हैं।

    अंतर-राज्यीय नदी संपर्क संबंधी समूह

    मंत्रालय द्वारा अंतर-राज्यीय नदी संपर्क संबंधी समूह का गठन 12.3.2015 को किया गया। समूह ने ऐसे संपर्क की परिभाषा सहित अंतर-राज्यीय नदी संपर्क संबंधी सभी संगत मुद्दों की समीक्षा की तथा अंतर-राज्यीय नदी संपर्क परियोजनाओं पर विचार किया और उनके वित्त पोषण पर सुझाव दिया। समूह ने कई बैठकें की तथा मंत्रालय को 28.5.2015 को अपनी रिपोर्ट दी।

    केन-बेतवा संपर्क परियोजना

    चरण-1

    केन-बेतवा संपर्क परियोजना को भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया है।
    माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री ने 1 सितम्बर, 2014 को मध्य प्रदेश में मंत्रालय के कई कार्यालयों के कार्यकरण की समीक्षा की जिनमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की उपस्थिति में केन-बेतवा संपर्क की स्थिति की समीक्षा की गई।
    परियोजना की पर्यावरण मंजूरी के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआरईए) अध्ययन हेतु विचारार्थ विषय (टीओआर) को 15 सितम्बर, 2014 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी मिल गई थी।
    जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव ने 21 अगस्त, 2014 को नई दिल्ली में केन-बेतवा संपर्क परियोजना के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिकारियों के साथ एक बैठक की जिसमें उनके साथ राज्यों के लिए परियोजना में परिकल्पित लाभ, डूब क्षेत्र तथा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट पर चर्चा की गई। केन-बेतवा संपर्क के कार्यान्वयन हेतु प्रस्तावित स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) की संरचना पर भी चर्चा की गई।
    केन-बेतवा संपर्क परियोजना पर 24-12-2014 और 27-12-2014 को जन सुनवाई की गई।
    केन-बेतवा संपर्क के चरण-1 के अंतर्गत जन-सुनवाई की विस्तृत कार्यवाही/दस्तावेजों को मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अप्रैल, 2015 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सौंप दिया।
    संशोधित पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट जुलाई, 2015 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को प्रस्तुत की गई।
    पर्यावरण मंजूरी के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की विशेष मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने केन-बेतवा संपर्क परियोजना के चरण-1 पर नई दिल्ली में क्रमश: 24.8.2015, 26.10.2015 और 8.2.2016 को हुई अपनी 86वीं, 88वीं और 91वीं बैठक में विचार किया।
    मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मध्य प्रदेश वन्यजीव बोर्ड ने 22 सितम्बर, 2015 को हुई अपनी बैठक में केन-बेतवा संपर्क परियोजना के चरण-1 को वन्य जीव स्वीकृति दी तथा उसकी सिफारिश की। एनबीडब्ल्यूएल द्वारा विचार करने हेतु दिनांक 14-12-2015 के पत्र द्वारा पीसीसीएफ (वन्य जीव) मध्य प्रदेश ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को प्रस्ताव प्रस्तुत किया। एनबीडब्ल्यूएल ने 26.2.2016 को हुई बैठक में मामले पर चर्चा की।
    छतरपुर और पन्ना जिलों में वन भूमि के डाइवर्जन हेतु एफआरए प्रमाण पत्र प्राप्त हो गए हैं। छतरपुर, सागर, दमोह के प्रमुख वन संरक्षक के आवाह क्षेत्र सुधार योजना हेतु तकनीकी अनुमोदन प्राप्त हो गया है। सभी आवश्यक ब्यौरे/दस्तावेज वन विभाग, मध्य प्रदेश को सौंप दिए गए हैं और उन्हें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। वन विभाग, मध्य प्रदेश वन भूमि डाइवर्जन स्वीकृति के लिए मामले पर कार्यवाही कर रहा है।
    केन-बेतवा संपर्क परियोजना की अनेक स्वीकृतियां अग्रिम स्तर पर हैं और सरकार सांविधिक स्वीकृतियों के बाद आईएलआर कार्यक्रम के मॉडल संपर्क परियोजना के रूप में इस राष्ट्रीय परियोजना का कार्यान्वयन शुरू करेगी।

    चरण-2

    केन-बेतवा संपर्क परियोजना चरण-2 की डीपीआर पूरी कर ली गई है और 17 जनवरी, 2014 को मध्य-प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकारों को सौंप दी गई है।
    केन-बेतवा संपर्क परियोजना चरण-2 के अंतर्गत निचले ओर्र बांध की वन स्वीकृति के लिए 02-10-2014 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को ऑनलाइन आवेदन भेज दिया गया है।
    सीसीएफ, शिवपुरी और अशोक नगर, मध्य-प्रदेश से सीएटी योजना का अनुमोदन प्राप्त हो गया है और इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है।
    केन-बेतना चरण-2 के अंतर्गत निचले ओर्र बांध का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा यथा अनुमोदित विचारार्थ विषयों के अनुरूपपूरा कर लिया गया है। निचले ओर्र बांध के विषय में जन-सुनवाई तीन स्थानों अर्थात् (एक) गांव ददौनी, जिला शिवपुरी में दिनांक 17.9.2015, (दो) गांव-पिपरौद, जिला अशोक नागर में दिनांक 18.9.2015 और (तीन) गांव-नौनेर, जिला दतिया में दिनांक 18.9.2015 को की गई है।
    मध्य प्रदेश का वन विभाग वन भूमि डाइवर्जन स्वीकृति के मामले की तैयारी कर रहा है। इस संबंध में एनडब्ल्यूडीए संबंधित अधिकारियों के साथ मामले पर कार्रवाई कर रहा है।
    ईएसी ने दिनांक 8.2.2016 को अपनी 91वीं बैठक में पर्यावरणीय स्वीकृति हेतु विचार किया और निचले ओर्र बांध परियोजना हेतु स्वीकृति देने का निर्णय लिया गया।
    अशोक नगर और शिवपुरी के संबंधित कलेक्टर और जिला वन अधिकारी ने अपने हिस्से की सूचना भरकर फार्म-1 एवीसीसीएफ (भूमि प्रबंधन), भोपाल को आगे की कार्यवाही के लिए भेज दिया है।
    अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ) आवश्यक अनुमोदन हेतु शीघ्र ही मध्य प्रदेश सरकार को पूर्ण प्रस्ताव करेगा। इसेवन स्वीकृति जारी करने हेतु पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को उनकी सिफारिशों सहित प्रस्तुत किया जाएगा।

    दमनगंगा-पिंजाल संपर्क परियोजना और पार-तापी-नर्मदा संपर्क परियोजना

    इन दोनों संपर्कों की डीपीआर तैयार करने हेतु गुजरात और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों और केन्द्रीय मंत्री (जल संसाधन) के बीच दिनांक 03.05.2010 को माननीय प्रधानमंत्री की उपस्थिति में समझौते की डीपीआर तैयार करने का कार्य शुरू किया गया।

    दमनगंगा-पिंजाल संपर्क परियोजना

    दमनगंगा- पिंजाल संपर्क परियोजना की डीपीआर मार्च, 2014 में पूरी हो गई है और संबंधित गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्य सरकारों को प्रस्तुत कर दी गई है। बृहन मुंबई नगर निगम (एमसीजीएम), जिसे महाराष्ट्र सरकार ने नोडल संगठन बनाया था, ने इस परियोजना की डीपीआर केन्द्रीय जल आयोग को मूल्यांकन हेतु जनवरी, 2015 में सौप दी है।
    माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री ने परियोजना पर भावी कार्रवाई को तेज करने के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के साथ 7 जनवरी, 2015 को मुंबई में बैठक की।
    ननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री की अध्यक्षता में 8.2.2016 को हुई आईएलआर संबंधी विशेष समिति की 8वीं बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की गई जिसमें बातचीत में तेजी लाने की बात कही गई। साथ ही, यह सुझाव दिया गया कि सरकारी स्तर पर चर्चा की जाए।.

    पार-तापी-नर्मदा संपर्क परियोजना

    एनडब्ल्यूडीए ने इस परियोजना की डीपीआर अगस्त, 2015 में पूरी कर ली और उसे महाराष्ट्र तथा गुजरात सरकार को प्रस्तुत कर दिया।
    माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री की अध्यक्षता में 8.2.2016 को हुई आईएलआर संबंधी विशेष समिति की 8वीं बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की गई जिसमें सदस्यों ने यह इच्छा व्यक्त की कि दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारा करार की प्रक्रिय में तेजी लाई जाए।
    गुजरात और महाराष्ट्र के बीच दमनगंगा-पिंजाल और पार-तापी-नर्मदा संपर्क परियोजना के जल बंटवारे हेतु एक नए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाने का प्रस्ताव है जिससे इन संपर्क परियोजनाओं के कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त होगा

    महानदी – गोदावरी संपर्क परियोजना

    एनपीपी के प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत महानदी-गोदावरी-कृष्णा-पेन्नार-कावेरी-बेगाई-गुंडर की नौ संपर्क प्रणाली में महानदी- गोदावरी संपर्क पहला और महत्वपूर्ण संपर्क है।
    ओडिशा सरकार संपर्क परियोजना के अंतर्गत प्रस्तावित मनिभद्रा बांध में शामिल बडे डूब क्षेत्र के कारण महानदी (मनिभद्रा)- गोदावरी (डोवलाइस्वरम) के लिए सहमत नहीं थी।
    माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री द्वारा 3 दिसम्बर, 2014 को समीक्षा बैठकों के दौरान किए गए निर्णय के अनुसार, एनडब्ल्यूडीए ने महानदी- गोदावरी संपर्क में मनिभद्रा बांध में शामिल बडे डूब क्षेत्र के कारण हुई ओडिशा सरकार की चिंताओं के समाधान के लिए इस संपर्क की व्यवहार्यता की जांच की है।
    कम डूब क्षेत्र वाले मनिभद्रा-महानदी के वैकल्पिक प्रस्तावों को तैयार किया गया और एनडब्ल्यूडीए के डीजी ने 6.4.2015 को ओडिशा के जल संसाधन विभाग के मुख्य सचिव के साथ चर्चा की।
    ओडिशा सरकार के जल संसाधन विभाग के सुझावों के आधार पर एनडब्ल्यूडीए ने कम डूब क्षेत्र वाली महानदी-गोदावरी संपर्क परियोजना के संशोधित आरंभिक प्रस्ताव की पेशकश की। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने 29.5.2015 को ओडिशा के माननीय मुख्यमंत्री के समक्ष संशोधित प्रस्ताव का प्रस्तुतीकरण किया।
    प्रस्तावित मनिभद्रा बांध स्थल पर महानदी बेसिन में जल की उपलब्धता/जल संतुलन में अंतर के कारण यह निर्णय लिया गया कि एनआईएच महानदी-गोदावरी संपर्क परियोजना (बाढ़ अनुग्रता अध्ययन) का प्रणालीगत अध्ययन करेगा और एनआईएच ने इस पर काम शुरू कर दिया है।
    माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री ने 3.2.2016 को ओडिशा के मुख्यमंत्री के साथ भुवनेश्वर में महानदी-गोदावरी संपर्क परियोजना पर एक बैठक की। इस संबंध में ओडिशा सरकार से सकारात्मक उत्तर मिलने की आशा है।

    मानस-संकोश-तीस्ता-गंगा संपर्क

    मानस-संकोश-तीस्ता-गंगा संपर्क में गंगा के प्रवाह में वृद्धि करने हेतु मानस-संकोश और मध्यवर्ती नदियों के 43 बीसीएम अतिरिक्त जल का विपथन करने तथा प्रायद्वीपीय संपर्क प्रणाली के माध्यम से दक्षिण की ओर अधिक विपथन हेतु महानदी बेसिन में 14 बीसीएम जल उपलब्ध कराने की परिकल्पना की गई है।
    इस संपर्क की पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट 1996 में पूरी कर ली गई थी और मूल समरेखण के कारण व्यवहार्यता रिपोर्ट को पूरा नहीं किया जा सका क्योंकि मानस- संकोश-तीस्ता संपर्क, मानस बाध अभयारण्य, बक्सा बाध अभयारण्य तथा अन्य वनों से होकर गुजर रहा है।
    क्षेत्र में सर्वेक्षण और जांच की व्यावहारिक कठिनाईयों पर विचार करते हुए अब एनडब्ल्यूडीए ने लगभग 80 मी. लिफ्ट के साथ विभिन्न आरक्षित वनों से बचते हुए वैकल्पिक समरेखण अध्ययन करना शुरू किया है।
    माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री ने 31.12.2015 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को एक अ.शा. पत्र भेजा है जिसमें इस संपर्क परियोजना, जिससे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार को सिंचाई, पेयजल और बाढ़ नियंत्रण संबंधी भारी लाभ होगा, के लिए उनकी सहायता मांगी है।.
    मानस-संकोश-तीस्ता-गंगा संपर्क के वैकल्पिक समरेखण के लिए व्यवहार्यता रिपोर्ट की तैयारी अंतिम चरण में है।

    इंडिया वाटर वीक-2015

    ‘सतत विकास के लिए जल प्रबंधन’ विषयक एक अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन का 13-17 जनवरी, 2015 तक सफलतापूर्वक आयोजन किया गया।
    माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने 13 जनवरी, 2015 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में इस सम्मेलन का उद्घाटन किया जिसमें लगभग 1450 राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने भाग लिया; आस्ट्रेलिया इसका भागीदार देश था।
    इस विषय से संबंधित प्रदर्शनी जिसमें उपलब्ध प्रौद्योगिकी तथा समाधान को दर्शाया गया था, का प्रगति मैदान में 14-17 जनवरी, 2015 को आयोजन भी किया गया।

    इंडिया वाटर वीक-2016

    इंडिया वाटर वीक, 2016 का आयोजन 4-8 अप्रैल, 2016 को विज्ञान भवन तथा प्रगति मैदान, नई दिल्ली में किया गया।
    इसका विषय था ”सभी के लिए जल: मिलकर प्रयास करना”

    जल मंथन-1

    विभिन्न हितधारकों के बीच व्यापक विचार-विमर्श के माध्यम से बेहतर जल संसाधन विकास और प्रबंधन हेतु कार्यनीतियां बनाने के लिए 20-22 नवम्बर, 2014 तक विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक तीन दिवसीय सम्मेलन ‘जल मंथन’ का आयोजन किया गया। सम्मेलन के दूसरे दिन अर्थात् 21 नवम्बर, 2014 को ‘नदियों को परस्पर जोडना’ कार्यक्रम पर विशेष रूप से चर्चा की गई।

    जल मंथन-2

    22-23 फरवरी, 2016 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में दो दिवसीय सम्मेलन ‘जल मंथन-2’ का आयोजन किया गया। पहले दिन सतत विकास हेतु नदी बेसिन दृष्टिकोण, भूमि-जल प्रबंधन, जल सुरक्षा आदि पर विचार-विमर्श और चर्चा की गई जबकि दूसरे दिन जल प्रबंधन, केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय, जल संरक्षण, जल-गवर्नेंस में नवोन्मेषण तथा नदियों को परस्पर जोडना आदि पर चर्चा केन्द्रित रही।

    राज्यान्तरिक संपर्क

    एनडब्ल्यूडीए को 9 राज्यों यथा महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, उड़ीसा, बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ से राज्यान्तरिक संपर्क के 46 प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।
    इन 46 प्रस्तावों में से एनडब्ल्यूडीए ने मार्च, 2015 तक 35 राज्यान्तरिक संपर्कों की पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट (पीएफआर) तैयार कर ली है।
    राष्ट्रीय संदर्शी योजना संपर्क के अतिरिक्त, बिहार राज्य के दो राज्यान्तरिक संपर्को यथा- बूढ़ी गंडक-नून-बाया-गंगा तथा कोसी –मेछी संपर्क की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) क्रमश: दिसम्बर, 2013 और मार्च, 2014 में पूरी कर ली गई है। कोसी-मेछी संपर्क की डीपीआर का सीडब्ल्यूसी तकनीकी मूल्यांकन कर रहा है।
    पोनाइयर-पालार संपर्क (तमिलनाडु), वायगंगा (गोसी खुर्द)- नलगंगा (पुरनातापी) संपर्क (महाराष्ट्र), बाराकर-दामोदर- सुवर्णरेखा और वामसाधारा ऋषिकुलया (नंदिनीनल्ला) की डीपीआर का काम प्रगति पर है। इसमें से पोनाइय-पालार संपर्क की डीपीआर का काम पूरा होने के विभिन्न चरणों में है।

    नदियों को परस्पर जोडने से लाभ (अंतर-बेसिन जल अंतरण)

    राष्ट्रीय संदर्शी योजना के अंतर्गत नदियों को परस्पर जोडने के कार्यक्रम के पूरी तरह से लागू हो जाने से 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी, जिससे समग्र सिंचाई क्षमता 140 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 175 मिलियन हेक्टेयर हो जाएगीऔर बाढ़ नियंत्रण, नौवहन, जलापूर्ति, मातिस्यिकी, लवणता तथा प्रदूषण नियंत्रण आदि के लाभ के अतिरिक्त 34000 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी होगा।