मुल्ला पेरियार बांध संबंधी मुद्दा
- पेरियार सिंचाई कार्य हेतु त्रावणकोर के महाराजा और भारत राज्य के सचिव के बीच दिनांक 29.10.1886 के बीच 999 वर्षों के लिए एक पट्टा करारनामा हुआ था। 1970 के दूसरे समझौते के द्वारा तमिलनाडु को बिजली उत्पान के कार्य की भी अनुमति प्रदान की गयी थी। वर्ष 1880-1895 के बीच मुल्ला पेरियार बांध का निर्माण किया गया था। इसका पूर्ण जलाशय स्तर 152 फीट है और यह 68558 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई लाभ के लिए तमिलनाडु में बैगाई बेसिन को सुरंग के माध्यम से जल प्रदान करता है।
- वर्ष 1979 में पेरियार बांध में हुई क्षति के बारे में केरल प्रेस में रिपोर्टें आयीं । 25 नवम्बर, 1979 में सीडब्लूसी के अध्यक्ष ने केरल के सिंचाई और बिजली विभाग तथा तमिलनाडु के पीडब्लूडी के अधिकारियों के साथ बैठक की और मुल्ला पेरियार बांध को मजबूत बनाने केलिए कतिपय मध्यम अवधि उपायों और दीर्घकालिक उपायों पर निर्णय किया गया। सीडब्लूसी के अध्यक्ष की अध्यक्षता में 29 अप्रैल, 1980 को दूसरी बैठक हुई और यह विचार दिया गया कि आपातकालीन और अल्पकालीन उपायों को पूरा करने के बाद जलाशय में जल स्तर को 145 फीट तक बढ़ाया जा सकता है।
- कई याचिकाओं के साथ यह मामला न्याय निर्णयाधीन है। दिनांक 28.4.2000 के अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर जल संसाधन मंत्री ने दिनांक 19.5.2000 को एक अंतरराज्जीय बैठक की और इस बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार दोनों ही राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ सीडब्लूसी के सदस्य (डी एवं आर) के तत्वावधान में एक विशेषज्ञ समिति का गठन जून, 2000 में इस बांध की सुरक्षा का अध्ययन करने के लिए किया गया। समिति ने मार्च, 2001 की अपनी रिपोर्ट में यह विचार दिया गया कि कार्यान्वित उपायों की मजबूत करने के साथ बांध की सुरक्षा को खतरे में डाले बिना जल स्तर को 136 फीट से 142 फीट तक बढ़ाया जा सकता है। शेष सुदृढ़ीकरण उपायों को कार्यान्वित किए जाने के बाद जल स्तर को बढ़ाकर 152 फीट किए जाने पर विचार किया जाएगा।
- उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 27.2.2006 के अपने आदेश में तमिलनाडु सरकार को मुल्ला पेरियार बांध में जल स्तर को बढ़ाकर 136 फीट से 142 फीट करने और शेष सुदृढ़ीकरण उपायों को करने की अनुमति प्रदान की । उसके बाद केरल सरकार ने 18 मार्च, 2006 केरल सिंचाई और जल संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 पारित किया जिसके तहत मुल्ला पेरियार बांध के जल स्तर को 136 फीट से अधिक ऊंचा करने पर प्रतिबंधित था और इसे खतरनाक बांधों की सूची में डाल दिया गया। तमिलनाडु सरकार ने दिनांक 31.3.2006 को उच्चतम न्यायालय में एक वाद दायर किया जिसमें मुल्ला पेरियार बांधा पर उक्त अधिनियम के लागू होने को असंवैधानिक करार देने और केरल राज्य को तमिलनाडु का जलस्तर को 142 फीट तक बढ़ाने में बाधा पहुंचाने से रोकने की प्रार्थना की गयी थी।
- केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री ने दिनांक 29.11.2006 को नई दिल्ली में मुल्लापेरियार बांध मुद्दे पर तमिलनाडु और केरल राज्यों के मुख्य मंत्रियों की एक अंतरराज्जीय बैठक बुलायी । दोनों ही राज्यों ने इस बैठक में अपने सबंधित पक्षों पर जोर दिया और दोनों ही राज्यों को स्वीकार्य किसी एक समाधान के संबंध में किसी मत पर नहीं पहुंचा जा सका।
- बाद में, तमिलनाडु के मुख्य मंत्री ने दिनांक 18.12.2007 को प्रधानमंत्री से मुलाकात की और प्रधानमंत्री ने उन्हें सुझाव दिया कि वे मुल्लापेरियार मसले पर केरल के मुख्यमंत्री के साथ बैठक करे। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री की उपस्थिति में दिनांक 19.12.2007 को केरल के मुख्यमंत्री के साथ मुलाकात की। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने दिनांक 20.12.2007 के पत्र में यह उल्लेख किया कि इस बैठक में उन्होंने सीडब्लूसी के माध्यम से दोनों ही राज्यों में किसी से भी असम्बद्ध इंजीनियरों द्वारा बांधों के रिसाव मापन का निरीक्षण करने का सुझाव दिया था। तथापि, ऐसे निगरानी तंत्र पर दोनों ही राज्य एकमत नहीं हो सके।
- इसी बीच केरल सरकार ने आईआईटी दिल्ली के एक प्रोफेसर के माध्यम से जल विज्ञान समीक्षा अध्ययन कराया और इस रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला कि मुल्लापेरियार बांध अनुमानित संभावित अधिकतम बाढ़ के प्रवाह के लिए जल विज्ञान की दृष्टि से असुरक्षित है। सीडब्लूसी ने इस रिपोर्ट की जांच की और यह पाया कि यह रिपोर्ट सही प्रतीत नहीं होता है।
- सचिव (जल संसाधन) ने दिनांक 31.7.2009 को मुल्लापेरियार बांध पर एक अंतरराज्जीय बैठक बुलायी। इस बैठक में केरल के प्रतिनिधि ने सूचित किया कि केरल सरकार ने केवल व्यवहार्य समाधान के रूप में एक नए बांध के निर्माण की संकल्पना की है। वह अपने ही खर्च पर एक नए बांध के निर्माण पर भी विचार कर पाया। बाद में, तमिलनाडु सरकार ने दिनांक 14.9.2009 के पत्र के तहत यह चर्चा की कि केरल सरकार द्वारा नए बांध के निर्माण की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि विद्यमान बांध को मजबूत किए जाने के बाद यह बांध नए बांध की तरह ही कार्य करेगा।
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माननीय उच्चतम न्यायालय के पांच सदस्यीय पीठ द्वारा मुल्लापेरियार मामले की सुनवाई की जा रही थी जिन्होंने दिनांक 18.02.2010 को एक अधिकार प्राप्त समिति के गठन का निर्देश दिया। माननीय न्यायालय ने कहा:
“कि कानूनी और संवैधानिक मुद्दों से अलग अन्य बातों के साथ वास्तविक शिकायत यह है कि तमिलनाडु राज्य की मुख्य चिंता यह है कि वह मुल्लापेरियार बांध के जलाशय स्तर को 142 फीट नहीं बढ़ा सकता है। दूसरी ओर, केरल राज्य की चिंता यह प्रतीत होती है कि वह इस बांध की सुरक्षा के बारे में चिंतित है ।”
- उक्त आदेश के अनुसार, अधिकार प्राप्त समिति का विचारार्थ विषय यह था कि :
i. सभी मुद्दों पर इस वाद के लिए दोनों पक्षों को सुने जिन्हें माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष उठाए गए मुद्दों तक सीमित किए बिना उनके समक्ष उठाए जाएंगे और जहां तक संभव होगा इसके गठन के छह महीने के भीतर एक रिपोर्ट देगी।
ii. समिति अपनी स्वयं की प्रक्रिया तैयार करेगी और उपयुक्त निर्देश देगी जो सुनवाई और इसकी बैठक के स्थान के लिए हो।
iii. समिति ऐसे साक्ष्य की प्राप्ति के लिए स्वतंत्र है क्योंकि यह इसे उपयुक्त मानती है।
iv. (केरल सिंचाई और जल संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2006 की मान्यता सहित कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा विचार किया जाएगा। -
तदनुसार ही, जल संसाधन मंत्रालय ने दिनांक 30.04.2010 को जारी सरकारी राजपत्र के तहत निम्न रूप में अधिकार प्राप्त समिति का गठन निम्नवत किया:
न्यायाधीश (डॉ.) एस. एस. आनंद (सभापति)
न्यायाधीश श्री के. टी. थॉमस (सदस्य)
न्यायाधीश(डॉ.)ए.आर. लक्ष्मणन (सदस्य)
डॉ. सी. डी. थाटे (सदस्य)
श्री डी. के. मेहता (सदस्य)
श्री सत्यपाल (सदस्य सचिव) - समिति ने बीस बैठकें की और दिसम्बर, 2010 में स्थल का दौरा भी किया। दिनांक 23.4.2012 को सौंपी गयी अपनी रिपोर्ट में समिति ने यह निष्कर्ष दिया कि यह बांध जल विज्ञान दृष्टिकोण से सुरक्षित है और कि नए बांध के निर्माण के लिए केरल राज्य के प्रस्ताव में उनके द्वारा ही पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है।
- अधिकार प्राप्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में दो विकल्पों का सुझाव दिये:
i. प्रथम विकल्प यह है कि केरल एक नये बांध का निर्माण कर सकता है और विद्यमान बांध को नए बांध के निर्माण कार्य पूरा होने और परिचालन शुरू करने तक इसे नष्ट नहीं किया जाए।
ii. दूसरा विकल्प विद्यमान बांध की मरम्मत करना, मजबूत बनाना और पुनर्निर्माण करना है। - माननीय उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों के एक संवैधानिक पीठ ने तमिलनाडु और केरल राज्यों को शामिल करते हुए जुलाई/अगस्त, 2013 में मुल्लापेरियार बांध मामले को सुना है। इस मामले में सुनवाई दिनांक 21.08.2013 को पूरी हुई। माननीय उच्चतम न्यायालयके 5 न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने दिनांक 7.5.2014 को अपना निर्णय दिया। माननीय उच्चतम न्यायालय ने केरल सिंचाई और जल संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2006 को असंवैधानिक करार दिया और संघ सरकार को यह निर्देश दिया कि वह एफआरएल को 142 फीट तक बनाए रखने के लिए मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा के बारे में एक तीन सदस्यीय पर्यवेक्षी समिति गठित करे। विधि और न्याय मंत्रालय से परामर्श करने के बाद मुल्लापेरियार बांध संबंधी पर्यवेक्षी समिति की स्थापना करने संबंधी एक मंत्रिमंडल टिप्पणी को दिनांक 13.06.2014 को मंत्रिमंडल सचिवालय को भेजा गया। मंत्रिमंडल ने मुल्लापेरियार बांध सबंधी तीन सदस्यीय पर्यवेक्षी समिति के गठन के लिए दिनांक 18.6.2014 को अपना अनुमोदन दिया। मंत्रिमंडल के अनुमोदन के अनुसरण में मुल्लापेरियार बांध संबंधी एक तीन सदस्यीय पर्यवेक्षी समिति के गठन का कार्यालयज्ञापन दिनांक 01.07.2014 को जारी किया गया। पर्यवेक्षी समिति का कार्यालय कुमिली, करेल में स्थित है। मुल्लापेरियार बांध संबंधी पर्यवेक्षी समिति की छह बैठकें केरल में पहले ही दिनांक 08.07.2014, 17.07.2014, 19.8.2014, 15.9.2014, 3.11.2014 और 24.11.2014 को हुई है।
- केरल राज्य सरकार ने दिनांक 7.5.2014 के माननीय उच्च्तम न्यायालय के आदेश के विरूद्ध एक मूल वाद संख्या 2006 का 3 में समीक्षा याचिका (सी) संख्या 2014 कर 1705 दायर किया जिसे 2 दिसम्बर, 2014 को शीर्ष न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया है।
- तमिलनाडु सरकार ने मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा करने के लिए सीआईएसफ की तैनाती के लिए शीर्ष न्यायालय में निवेदन करते हुए उच्चतम न्यायालय में आईएस संख्या 25/2014 दर्ज किया है । यह मामला 20.02.2015 को सुनवाई के लिए आया और शीर्ष न्यायालय ने भारत संघ को प्रत्युत्तर दायर करने के लिए निर्देश दिया है।