भारत सरकार के गोदावरी नदी से संबंधित अंतर्राज्जीयजल विवाद के अधिनिर्णय हेतु न्यायधीश बछावत की अध्यक्षता में गोदावरी जल विवाद अभिकरण का अप्रेल, 1969 में गठन किया।
अधिनिर्णय की कार्यवाहियों के चलते समय अनेक पक्षकार राज्यों अर्थात महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के बीच वर्ष 1975 में अनेक अंतर्राज्जीयकरार हुए। तत्पश्चात, सिंचाई परियोजनाओं की संख्या के संबंध में वर्ष 1978-79 के दौरान पक्षकार राज्यों के बीच द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय करार हुए। अभिकरण ने इन करारों का संज्ञान लिया और पक्षकार राज्यों के अनुरोध पर अंतिम अधिनिर्णय में इन्हें शामिल किया गया। इन करारों में अंतर्राज्जीयप्रभावों की श्रृंखला से यह आशय निकला कि पक्षकार राज्य गोदावरी नदी अथवा इसकी सहायक नदियों के प्रवाह से कुछ निर्दिष्ट सीमाओं तक उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र गोदावरी के प्रवाह को पैथन तक उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है जबकि आंध्र प्रदेश राज्य गोदावरी के प्रवाह के पैथन के नीचे उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है। इसी प्रकार, द्विपक्षीय करारों में गोदावरी की कुछ सहायक नदियों के जल के सहभाजन के लिए निर्दिष्ट किया गया है। करार में, इंचम्पल्ली और पोलावरम जैसी कॉद अंतर्राज्जीय परियोजनाओं में निर्दिष्ट पूर्ण जलाशय स्तर सहित निर्माण करने का भी प्रावधान हैं। अभिकरण ने अपना अधिनिर्णय जुलाई, 1980 में दिया।
अधिनिर्णय