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नदी बेसिन प्रबंधन

नदी बेसिन प्रबंधन योजना एक केन्द्रीय क्षेत्र की योजना है जिसके 2 मुख्य घटक हैं जो बारहवीं योजनावधि से चल रही है।इनके नाम हैं:-

ब्रह्मपुत्र बोर्ड-

ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना ब्रह्मपुत्र बोर्ड अधिनियम, 1980 नामक संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी और इसने 11 जनवरी, 1982 से कार्य करना आरंभ कर दिया है। इसका उद्देश्य ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ तथा नदी के किनारों के कटाव को नियंत्रित करने और उससे जुडे मामलों में योजना बनाना और उसके एकीकृत उपायों को लागू करना है। ब्रह्मपुत्र बोर्ड के निम्नलिखित मुख्य कार्य है:-

  • ब्रह्मपुत्र और बराक घाटी में 'सर्वेक्षण और जांच' करना तथा ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ नियंत्रण, नदी तट के कटाव और जल निकासी में सुधार तथा इससे जुडे मामलों अर्थात् सिंचाई, जल विद्युत, नौवहन और अन्य लाभप्रद प्रयोजनों के लिए ब्रह्मपुत्र घाटी के जल संसाधनों का विकास और उपयोग करने हेतु मास्टर प्लान तैयार करना।
  • बांधों तथा अन्य परियोजनाओं के संबंध में राज्यों के बीच लागत के बंटवारे सहित सर्वेक्षण और जांच तथा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट और अनुमान तैयार करना।
  • भारत सरकार द्वारा अनुमोदित मास्टर प्लान में चिन्हित अन्य परियोजनाओं और बांधों के चरणबद्ध निर्माण/ कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों के परामर्श से कार्यक्रम तैयार करना।
  • ऐसे बांधों और अन्य परियोजनाओं के निर्माण, संचालन और अनुरक्षण हेतु मानकों और विनिर्देशों को अंतिम रूप देना और
  • भारत सरकार द्वारा अनुमोदित मास्टर प्लान में चिन्हित बहुउद्देशीय तथा अन्य जल संसाधन परियोजनाओं का निर्माण, संचालन और अनुरक्षण करना। जल संसाधन विकास योजना की जांच (आईडब्ल्यूआरडीएस)

जल संसाधन विकास योजना की जांच (आईडब्ल्यूआरडीएस)

इसका मुख्य कार्य एक व्यापक तरीके से हमारे जल संसाधन-परियोजनाओं की योजना बनाना और उनका विकास करना है।इसके दो उप-घटक हैं-

(क) सीडब्ल्यूसी घटक-

परियोजना की पहली और मूलभूत आवश्यकता अपनी तकनीकी आर्थिक व्यवहार्यता की स्थापना हेतु एक उपयुक्त स्थान का पता लगाना होता है। तकनीकी आर्थिक व्यवहार्यता स्थापित करने हेतु और जल विज्ञान, सिंचाई, आयोजना, पर्यावरणीय पहलू, फसल पद्धति, फसल हेतु जल की आवश्यकता आदि के संबंध में विस्तृत सर्वेक्षण और जांच तथा अध्ययन के पश्चात विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जाती है।

प्रस्ताव के निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बेसिनों की पहचान की गई है:

  • पूर्वोत्तर राज्यों में जल विद्युत उपलब्ध कराना तथा सिंचाई क्षमता में वृद्धि करना।
  • सिक्किम तथा जम्मू और कश्मीर सहित पूर्वोत्तर राज्यों में नई जल-विद्युत और सिंचाई परियोजनाओं से राज्यों को जल-विद्युत और सिंचाई लाभ प्राप्त होगें।
  • यथा प्रस्तावित विशेष अध्ययन से भारत में नदियों की विद्युत और सिंचाई क्षमता का पता लग सकेगा।

(ख)  एन डब्ल्यू डी ए घटक-

जल संसाधन मंत्रालय (पूर्वतर्वी सिंचाई मंत्रालय) और केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने 1980 में जल संसाधन विकास के लिए एक राष्ट्रीय संदर्शी योजना (एनपीपी) बनाई थी जिसमें दो घटकों यथा- हिमालयी नदी विकास घटक और प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को शामिल करते हुए अतिरिक्त जल का कम जल वाले बेसिनों/क्षेत्रों में अंतर बेसिन अंतरण करने की परिकल्पना की गई थी। राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) की स्थापना 1982 में जल संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत की गई थी जिसका काम एनपीपी के प्रस्तावों की व्यवहार्यता का पता लगाने हेतु अनेक तकनीकी अध्ययन करना तथा उसे मूर्त रूप देना है।

यह देश में अपनी तरह का पहला संगठन है जो व्यापक देश हित में विभिन्न उपयोगों हेतु जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग तथा वैज्ञानिक विकास हेतु अंतर-बेसिन जल अंतरण पर ऐसे व्यापक अध्ययन करता है एनडब्ल्यूडीए के समय-समय पर यथा-संशोधित निम्न कार्य हैं-

  • विभिन्न प्रायद्वीपीय नदी प्रणालियों तथा हिमालयी नदी प्रणालियों में उपलब्ध उस पानी की मात्रा के बारे में विस्तृत सर्वेक्षण करना जिसे निकट भविष्य में अन्य बेसिन/राज्यों की तर्कसंगत आवश्यकताएं पूर्ण हो जाने के उपरान्त दूसरे बेसिनों/राज्यों में अंतरित किया जा सके।
  • प्रायद्वीपीय नदियों और हिमालयी नदियों के विकास से संबंधित योजना के विभिन्न घटकों की व्यवहार्यता रिपोर्ट (एफआर) तैयार करना।
  • संबंधित राज्यों की सहमति के बाद उनके जल संसाधनों के विकास के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत नदी संपर्क प्रस्तावों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करना।
  • राज्यों द्वारा प्रस्तावित अंत:राज्य सम्पर्कों की पूर्व-व्यवहार्यता/व्यवहार्यता/विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करना। उनकी व्यवहार्यता रिपोर्ट/डीपीआर पर काम करने से पूर्व ऐसे प्रस्तावों पर संबंधित को-बेसिन राज्यों की सहमति ली जाए।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के अंतर्गत आने वाली परियोजनाओं जिसमें त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) के अंतर्गत आने वाली परियोजनाएं भी शामिल हैं तथा ऐसी अन्य परियोजनाओं और नदियों को परस्पर जोड़ने वाली परियोजनाओं को पूरा करने हेतु या तो स्वयं अथवा किसी नियुक्त एजेंसी/संगठन/पीएसयू या कंपनी के माध्यम से परियोजनाओं का/निर्माण/मरम्मत/नवीकरण/पुनर्वास/कार्यान्वयन करना।
  • एनडब्ल्यूडीए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा यथा-निर्देशित तरीके से या अन्यथा ऋण राशि अथवा जमा राशि पर प्राप्त धन अथवा ब्याज पर दिए गए ऋण और सोसाइटी की वर्तमान और भावी सभी या किसी अन्य संपत्ति, परिसंपत्ति अथवा राजस्व पर बंधक, गिरवी, परिवर्तन या धारणाधिकार के माध्यम से ऐसी किसी ऋण राशि/धन/जमा/ऋण आदि का पुनर्भुगतान सुनिश्चित करने हेतु एक रिपोजिटरी के रूप में कार्य करेगा।

योजना का वित्तीय ब्यौरा:-

  • 12वीं योजना के दौरान सीसीईए ने 28.2.2014 की अपनी बैठक में रुपए 975 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय वाली आरबीएमएस को स्वीकृति दी।
  • तदनुसार, आईएफडी की सहमति और माननीय जल संसाधन मंत्री के अनुमोदन से मंत्रालय ने 28.4.2014 को योजना का अनुमोदन जारी किया।
  • 31 मार्च, 2017 तक रुपए 746.77 करोड़ का व्यय हुआ है जो 12वीं योजना परिव्यय का 76.59 प्रतिशत है।
  • योजना को 2017-18 से 2019-20 तक जारी रखने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
  • वर्तमान वित्त वर्ष 2017-18 का बजट अनुमान 199.99 करोड़ रुपए है।