कैबिनेट ने 6.4.2016 को रुपए 3679.7674 करोड़ के कुल परिव्यय (राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (एनएचपी) के लिए 3,640 करोड़ रुपए तथा एक राष्ट्रव्यापी जल संसाधन डाटा रिपोजिटरी के रूप में राष्ट्रीय जल सूचना केन्द्र (एनडब्ल्यूआईसी) की स्थापना हेतु 39.7674 करोड़ रुपए) वाली राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को एक केन्द्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में स्वीकृति दी। एनडब्ल्यूआईसी की परिकल्पना एक स्वतंत्र संगठन के रूप में की गई है जिसके पास पर्याप्त प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां होगी और यह सचिव, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के नियंत्रणाधीन होगा।
परियोजना का उद्देश्य
जल संसाधन सूचना की सीमा, गुणवत्ता और पहुंच में सुधार लाना, बाढ़ के लिए निर्णायक सहायता प्रणाली तथा बेसिन स्तर स्रोत आकलन/आयोजना और भारत में लक्षित जल संसाधन पेशेवरों और प्रबंध संस्थानों की क्षमता को मजबूत बनाना।
परियोजना की मुख्य बातें
- केन्द्रीय क्षेत्र की योजना जिसे राज्यों से शत-प्रतिशित अनुदान प्राप्त होगा।
- बजट परिव्यय: लगभग रुपए 3,640 करोड़ जिसमें विश्व बैंक परियोजना लागत की 50 प्रतिशत तक सहायता देगा।
- समय सीमा: 2016-17 से 2023-24 अर्थात् 8 वर्ष
- विस्तार: समस्त भारत
- मुख्य एजेंसी: जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय।
- कार्यान्वयन एजेंसी: 49 (केन्द्र सरकार की 10 तथा राज्यों की 39 सहित)
- विश्व बैंक के साथ ऋण करार पर 18-04-2017 को हस्ताक्षर किए गए।
परियोजना संकल्पना
- निगरानी नेटवर्क का आधुनिकीकरण:परियोजना में परियोजना वाले राज्यों में निगरानी नेटवर्क स्थापित करने तथा उसे मजबूत बनाने और सारे देश में नए सेंसर, डाटा स्टोरेज और टेलीमीटरी प्रौद्योगिकी तैनात करने और सतही तथा भूमिगत जल हेतु व्यापक, आधुनिक, स्वचालित, वास्तविक समय वाली निगरानी प्रणालियां स्थापित करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
- ज्ञान प्राप्ति में बदलाव लाना: परियोजना को क्लाउड कम्प्यूटिंग, इंटरनेट, मोबाइल उपकरणों, सोशल मीडिया और विभिन्न हितधारकों द्वारा जल संबंधी जानकारी की अभिगम्यता को आधुनिक बनाने और ग्राहकीकृत दृष्टिकोण हेतु अन्य संचार साधन।
- विश्लेषणात्मक उपकरणों में वृद्धि करना:परियोजना जल संसाधन के आकलन, जल विज्ञान और बाढ़ के आने के पूर्वानुमान, जल अवसंरचना कार्यो, भूमि-जल प्रतिरूपण तथा नदी बेसिन और निवेश आयोजना के उपकरणों को विकसित और प्रदर्शित करेगी।
- संस्थानों का आधुनिकीकरण:परियोजना जनता तथा संस्थागत क्षमता में निवेश के साथ प्रौद्योगिकी निवेश में भी सहायता देगी। विशेषज्ञता केन्द्रों,नए अभिगम दृष्टिकोणों को विकसित करने, शिक्षाविदों और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग करने तथा आउटरीच कार्यक्रमों के लिए भी सहायता देगी। तकनीकी निवेश को प्रभावी रूप से सहायता देने वाले कार्यों को सुकर बनाने हेतु कार्यालय और उपकरणों को आधुनिक बनाया जाएगा।
परियोजना के घटक
- जल संसाधन निगरानी प्रणालियाँ-यह घटक मौसम विज्ञान, धारा के प्रवाह, भूमि-जल, जल गुणवत्ता तथा जल भंडारण माप तथा जल सूचना केन्द्रों के निर्माण जिसमें जल संसाधन तथा उपयोग दोनों की जानकारी होगी, सहित नई और विद्यमान जल मौसम विज्ञान निगरानी प्रणालियों की स्थापना/आधुनिकीकरण हेतु धनराशि देगा। इस घटक को मुख्य केन्द्रीय एजेंसियों की सहायता से राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा। इसके मुख्य कार्यकलापों में शामिल है:
- जल मौसम विज्ञान पर्यवेक्षण नेटवर्क की स्थापना;
- जल अवसंरचना हेतु निगरानी नियंत्रण और डाटा अर्जन (एससीएडीए) प्रणालियों की स्थापना; और
- जल सूचना केन्द्रों की स्थापना।
- जल संसाधन सूचना प्रणालियाँ- यह घटक विभिन्न डाटा स्रोतों/विभागों से डाटाबेस और उत्पादों के मानकीकरण के माध्यम से वेब समर्थित डब्ल्यूआरआईएस वाले राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय जल सूचना केन्द्रों को सुदृढ़ बनाने तथा प्रभावी आयोजना, निर्णय लेने और कार्य करने हेतु निर्णय लेने वालों को व्यापक, समय पर तथा समेकित जल संसाधन सूचना उपलब्ध कराने में सहायता देगा।
डाटा/सूचना स्रोतों में घटक 'क' के अंतर्गत वास्तविक समय संबंधी डाटा प्राप्ति नेटवर्क, सुदूर संवेदी डाटा और घटक 'ग' के अंतर्गत विकसित भौगोलिक मानचित्र और सूचना उत्पाद शामिल है। जल सूचना की गुणवत्ता और उस तक पहुंच में सुधार तथा डाटा से विश्लेषणात्मक परिणाम (प्रवृत्तियां, जल संतुलन आदि) तक जनता की पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ साक्ष्य आधारित संचालनात्मक और निवेश योजनाओं में योगदान देने पर बल दिया जाएगा। यह परियोजना, केन्द्र, प्रदेश, नदी बेसिन और राज्य/संघ राज्य स्तरों पर वेब आधारित डब्ल्यूआरआईएस हेतु केन्द्रों के विकास या उन्हें मजबूत करने को सहायता देगी।इस घटक के अंतर्गत मुख्य कार्यकलापों में शामिल है:-
- भारत की जल संसाधनसूचना प्रणाली (डब्ल्यूआरआईएस) को सुदृढ़ बनाना; और
- क्षेत्रीय/ राज्य जल संसाधन सूचना प्रणाली।
- जल संसाधन कार्यकलाप और आयोजना प्रणालियाँ-यह घटक परस्पर विश्लेषणात्मक उपकरणों तथा निर्णय सहायक प्लेटफार्मके विकास में सहायता देगा जो जल विज्ञान बाढ़ पूर्वानुमान, समेकित जलाशय कार्यकलापों, उन्नत कार्यकलाप, आयोजना हेतु जल संसाधन लेखांकन तथा बेसिन दृष्टकोण के आधार पर सतही तथा भूमिगत, दोनों प्रकार के जल के प्रबंधन हेतु डाटाबेस, मॉडल और परिदृश्य समेकन में सहायता देगा। यह घटक वैकल्पिक प्रबंधन परिदृश्यों के प्रभाव का विश्लेषण करने तथा घटक 'ख' के अंतर्गत वास्तविक समय वाले डाटा का उपयोग करके सूचना उत्पादों के सृजन हेतु परस्पर प्रणालियां उपलब्ध कराएगा। घटक 'ग' में तीन उप-घटक हैं:-
- विश्लेषणात्मक उपकरणों तथा निर्णय सहायक प्लेटफार्मों का विकास (नदी बेसिन, प्रतिरूपण, धारा प्रवाह, पूर्वानुमान तथा जलाशय संचालन प्रणालियां तथा सिंचाई डिजाइन और संचालन);
- उद्देश्य आधरित सहायता; और
- प्रायोगिक नए सूचना उत्पाद।
- संस्थागत क्षमता में वृद्धि- घटक 'घ' का लक्ष्य सूचना आधारित जल संसाधन प्रबंधन हेतु क्षमता निर्माण करना है। यह (i) जल संसाधन सूचना केन्द्रों (ii) पेशेवर विकास (iii) परियोजना प्रबंधन और (iv) संचालन सहायता की स्थापना हेतु उप-घटकों की सहायता करेगा।
परियोजना राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय संस्थानों के साथ भागीदारी विकसित करेगी, क्रिया समुदायों की स्थापना करेगी, इंटर्नशिप और आगंतुक विशेषज्ञ कार्यक्रमों तथा सूचना के आदान-प्रदान और पेशेवर नेटवर्किंग के लिए विशेष प्रशिक्षण और कार्यशालाओंका आयोजन करेगी। विशेष जरूरतों को पूरा करनेके लिए उत्कृष्टता केन्द्र (राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय) भी स्थापित किए जाएंगे। आउटरीच तथा जागरूकता कार्यक्रम भी इस परियोजना का एक अभिन्न भाग होंगे और यह सिंचित या बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों जैसे विशेष लक्ष्य श्रोताओं तथा आम जनता दोनोंके लिए एनएचपी का प्रदर्शन करेगी।
लाभार्थी
परियोजना के प्रत्यक्ष लाभार्थियों के समूह हैं:
- नदी बेसिन संगठनों सहित सतही जल और/ या भूमि-जल आयोजना और प्रबंधन हेतु उत्तरदायी केन्द्रीय और राज्य कार्यान्वयन एजेंसियां (आईए); और
- विभिन्न क्षेत्रों और विश्वभर में डब्ल्यूआरआईएस के प्रयोक्ता अंतिम लाभार्थी चयनित कृषि समुदाय होगा जिन्हें जल प्रबंधन की प्रायोगिक परियोजनाओं से लाभ होगा। ग्रामीण और शहरी जल तथा विद्युत प्रयोक्ताओं; बाढ़ और सूखे से प्रभावित आबादी विशेषकर गरीब ग्रामीण लोग और कृषक परिवार, जिन्हें उन्नत सिंचाई जलापूर्ति और प्रबंधन से लाभ होगा; ऊर्जा, अंतर्देशीय जलमार्ग, पर्यावरण और कृषि मंत्रायल; अनुसंधान और शैक्षिक संस्थान; छात्र और शोधार्थी तथा गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसाइटी संगठन और निजी क्षेत्र।