कावेरी जल विवाद
कावेरी एक अंतरराज्जीय बेसिन है जिसका उदगम कर्नाटक है और यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पूर्व तमिलनाडु और पांडिचेरी से होकर गुजरता है। कावेरी बेसिन का कुल जलसंभरण 81,155 वर्ग किलोमीटर है जिनमें से कर्नाटक में नदी का जल संभरण क्षेत्र लगभग 34,273 वर्ग किलोमीटर है, केरल में कुल जल संभरण क्षेत्र 2,866 वर्ग किलोमीटर है तथा तमिलनाडु और पांडिचेरी में शेष 44,016 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र है।
1.कर्नाटक में हरंगी और हेमावती बांधों का निर्माण हरंगी और हेमावती नदियों पर किया गया है जो नदियों कावेरी नदी की सहायक नदियां हैं। कर्नाटक में मुख्य कावेरी नदी में इन दो बांधों के निम्न धारा में कृष्णा राजा सागर बांध का निर्माण किया गया है। कर्नाटक के कबिनी जलाशय का निर्माण कावेरी नदी की एक साहायक नदी कबिनी नदी पर किया गया है जो कृष्णा सागर जलाशय में जुड़ती है। तमिलनाडु में कावेरी की मुख्यधारा में मेटुर बांध का निर्माण किया गया है । कावेरी के साथ कबिनी और मेटूर बांध के संगम के बीच केन्द्रीय जल आयोग ने मुख्य कावेरी नदी पर दो जीएंडडी स्थलों यथा कोलेगल और बिलीगुंडलू की स्थापना की है। बिलीगुंडुलू जीएंडडी स्थल मेटूर बांध के तहत लगभग 60 किलोमीटर है जहां कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ सीमा का निर्माण करती है।
2.तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुदुचेरी राज्यों के बीच अंतरराज्जीय कावेरी जल और नदी घाटी के संबंध में जल विवाद के न्यायनिर्णयन करने के लिए भारत सरकार ने 2 जून, 1990 को कावेरी जल विवाद अधिकरण (सीडब्लूडीटी) का गठन किया।
3.कावेरी जल विवाद अधिकरण (सीडब्लूडीटी) ने कर्नाटक राज्य को कर्नाटक में अपने जलाशय से पानी छोड़ने का निर्देश देते हुए 25 जून, 1991 को एक अंतरिम आदेश पारित किया था ताकि किसी जल वर्ष में (1 जून से 31 मई) के बीच मासिक रूप से या साप्ताहिक आकलन के रूप में तमिलनाडु के मेटूर जलाशय को 205 मिलियन क्यूबिक फीट (टलएमसी) पानी सुनिश्चित हो सके।
4.किसी विशेष महीने के संदर्भ में चार बराबर किस्तों में चार सप्ताहों में पानी छोड़ा जाना होता है। यदि किसी सप्ताह में पानी की अपेक्षित मात्रा को जारी करना संभव नहीं हो तो उक्त कमी को बाद के सप्ताह में छोड़ा जाएगा। विनियमित तरीके से तमिलनाडु राज्य द्वारा पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र के काराइकेल क्षत्र के लिए 6 टीएमसी जल दिया जाएगा।
5.उक्त आदेश पर विचार किए जाने के बाद भारत के महामहित राष्ट्रपति ने निम्न के विचार और निम्न पर रिपोर्ट देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के खंड (1) के तहत 27 जुलाई, 1991 को भारत के उच्चतम न्यायालय को संदर्भित किया :‐
i. क्या इस अधिकरण के आदेश में इस अधिनियम की धारा 5 (2) के अर्थ में रिपोर्ट और निर्णय शामिल है; और
ii. क्या इस अधिकरण के आदेश को प्रभावी बनाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा प्रकाशित किए जाने की आवश्यकता है;
6.उच्चतम न्यायालय ने उक्त प्रश्नों के उपर अन्यों के बीच 22 नवम्बर, 1991 को अपना यह विचार दिया कि;
i. दिनांक 25 जून, 1991 के अधिकरण के आदेश में अंतरराज्जीय जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 5 (2) के अर्थ के भीतर रिपोर्ट और निर्णय शामिल हैं; और
ii. इसलिए उक्त आदेश को प्रभावी बनाने के लिए इस अधिनियम की धारा 6 के तहत सरकारी राजपत्र में केन्द्र सरकार द्वारा इसे प्रकाशित किए जाने की आवश्यकता है”;
7.इसके विचारार्थ, दिनांक 25 जून 1991 के सीडब्लूडीटी के अंतरिम आदेश को प्रभावी बनाने और इस विवाद के विभिन्न पक्षकारों पर और विभिन्न पक्षकारों द्वारा प्रभावी बनाए जाने के लिए बाध्यकारी बनाए जाने के लिए 10 दिसम्बर, 1991 को आईएसआरडब्लूडी अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया और उनके द्वारा प्रभावी बनाए जाने की आवश्यकता है।
8.14 मई, 1992 को तमिलनाडु सरकार ने उच्चतम न्यायालय में 1992 के मूल वाद संख्या 1 को दायर किया जिसमें उन्होंने अन्य बातों के साथ साथ इस अधिकरण के निर्णयों को प्रभावी बनाने और सरकारी राजपत्र में अधिसूचना जारी करने के लिए सभी आवश्यक मामलों हेतु प्रावधान करते हुए एक योजना बनाने के लिए संघ सरकार को निर्देश देते हुए आवश्यक व्यादेश की डिग्री पारित करने की प्रार्थना की। दिनांक 9 अप्रैल, 1997 को उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक पीठ के समक्ष मूल वाद संख्या 1/92 सुनवाई के आया। उच्चतम न्यायालय के कहने पर भारत के महान्यावादी ने 9 अप्रैल, 1997 को न्यायालय में एक विवरण दिया कि भारत संघ इस अधिकरण के अंतरिम पंचाट के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अंतरराज्जीय जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा6क के तहत एक योजना तैयार करने के लिए सहमत है। 9 अप्रैल,1997 की सुनवाई के बाद जब उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार को एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया तो उच्चतम न्यायालय में 20अगस्त, 1997, 30 सितम्बर, 1997, 11 नवम्बर, 1997, 6 जनवरी, 1998, 31 मार्च, 1998, 28 अप्रैल, 1998 और 21 जुलाई, 1998 को नियमित सुनवाई हुई। उपर्युक्त के मद्देनजर, आईएसआरडब्लूडी अधिनियम, 1956 की धारा6क के उपबंधों के तहत केन्द्र सरकार ने कावेरी जल (1991 के अंतरिम आदेश और सभी बाद के संबंधित अधिकरण आदेशोंके कार्यान्वयन) योजना, 1998 नामक एक योजना को अधिसूचित किया इसमें कावेरी जल प्राधिकरण (सीआरए) और निगरानी समिति (सीएमसी) शामिल थीं। कावेरी नदी प्राधिकरण की अध्यक्षता माननीय प्रधान मंत्री द्वारा की जाती है और सदस्य के रूप में बेसिन राज्यों के मुख्यमंत्री होते हैं। जल संसाधन मंत्रालय के सचिवही इस प्राधिकरण के सचिव होते हैं। निगरानी समिति में अध्यक्ष के रूप में जल संसाधन मंत्रालय के सचिव और सदस्यों के रूप में बेसिन राज्यों के मुख्य सचिव एवं मुख्य इंजीनियर तथा केन्द्रीय जल आयोग के अध्यक्ष इसके सदस्य होते हैं। सीई (आईएमओ), सीडब्लूसी इस निगरानी समिति के सदस्य सचिव होते हैं। इस प्राधिकरण को इस अधिकरण के 25 जूल, 1991 के अंतरिम आदेश और इससे संबंधित बाद के आदेशों के कार्यान्वयन को प्रभावी बनाए जाने की आवश्यकता है। अब तक सीआरए ने 7 बैठकें और सीएमसी ने 32 बैठकें की है। सीआरए की 7 बैठकें दिनांक 19.9.2012 को हुईं औैर सीएमसी की 32 बैठकें दिनांक 10.1.2013 को हुईं (उच्चतम न्यायालय के दिनांक 04.01.2013 के आदेश के अनुपालन में)।
9.कावेरी जल विवाद अधिकरण (सीडब्लूडीटी) ने दिनांक 5 फरवरी, 2007 को इसकी रिपोर्ट और आईएसआरडब्लूडी अधिनियम, 1956 की धारा 5(2) का निर्णय दिया। केन्द्र सरकार और पक्षकार राज्यों ने इस अधिनियम की धारा 5(3) के स्पष्टीकरण/ आगे दिशानिर्देश के लिए आवेदन दिया। पक्षकार राज्यों ने भी उच्चतम न्यायालय के समक्ष अधिकरण के उक्त रिपोर्ट और निर्णय के विरूद्ध विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) भी दायर किया ।
10.अधिकरण ने 10 जुलाई, 2007 को विचार हेतु पक्षकारों की याचिकाओं को लिया और पाया कि पक्षकार राज्यों ने भी दिनांक 5.2.2007 के अधिकरण के उक्त निर्णय के विरूद्ध विशेष अनुमति याचिका दायर की है और माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी विशेष अनुमति याचिका को मंजूरी भी दे दी है। इस पृष्ठभूमि में उक्त अधिनियम की धारा 5(3) के तहत आवेदनों को उच्चतम न्यायालय के अपील के निपटान के पश्चात आदेशों के लिए सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।
11.इसके मद्देनजर भारत संघ ने यह उद्धृत करते हुए दिनांक 12.03.2008 के पत्र के तहत उक्त एसएलपी में कार्यान्वयन के लिए एक आवेदन और हलफनामा दायर किया कि आईएसआरडब्लूडी अधिनियम, 1956 की धारा 11 में यह दिया हुआ है कि “न तो उच्चतम न्यायालय और न ही कोई अन्य न्यायालय का किसी जल विवाद के संबंध में कोई क्षेत्राधिकार होगा जिसे इस अधिनियम के तहत उक्त अधिकरण को भेजा जा सकता है।” यह मामला उच्चतम न्यायालय के सक्रिय विचाराधीन है।
12.सीडब्लूडीटी के निर्णय को पक्षकार राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल, ने सिविल अपील दायर कर माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी है। इसके अतिरिक्त, पक्षकार राज्यों नेआईएसआरडब्लूडी अधिनियम, 1956 की धारा 5 (3) के अंतर्गत स्पष्टीकरण और व्याख्या की भी मांग की। इसी बीच, दिनांक 7.12.2012 को हुई सीएमसी की 31वीं बैठक में यह उल्लेख किया गया था कि जल संसाधन मंत्रालय दिसम्बर, 2012 के महीने में अंतिम पंचाट (निर्णय) को अधिसूचित करने के लिए कदम उठाएगा। इसी बैठक में जल की प्रमात्रा जिसे तमिलनाडु को दिसम्बर, 2012 के महीने के दौरान प्राप्त किया जाना था, को निर्धारित किया गया (12 टीएमसी)।
13.दिनांक 04.01.2013 को माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश में यह संकेत दिया गया है कि सभी संबंधित राज्यों की ओर से उपस्थित होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा है कि उन्हें लंबित पड़ी अपीलों में बताए गए उनके अधिकारों और उठाए गए मुद्दों के पूर्वाग्रह के बिना अधिसूचित किए गए सीडब्लूडीटी द्वारा अंतिम निर्णय के प्रति कोई आपत्ति नहीं है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने सीएमसी को निर्देश दिया कि वे दिनांक 11 जनवरी,2013 को या उसके पहले इस बैठक को बुलाए और दोनों ही राज्यों के लिए जल की आवश्यकता के संबंध में उपयुक्त आदेश प्रदान करें।
14.उपर्युक्त आदेश के अनुसरण में दिनांक 10.01.2013 को सीएमसी की 32वीं बैठक हुई। सीएमसी की इस 32वीं बैठक में उद्देश्य यह था कि जल की उस प्रमात्रा को निर्धारित किया जाए जिसे तमिलनाडु को अंतरिम आदेश के संदर्भ में जनवरी, 2013 माह में प्राप्त हो। यह निर्णय लिया गया था कि कर्नाटक को इस प्रकार से पानी को छोड़ने को नियमित करना चाहिए ताकि तमिलनाडु को जनवरी, 2013 के महीने के दौरान 1.51 टीएमसी पानी प्राप्त हो। कर्नाटक को छोड़कर बाकि सभी राज्यों ने पुन: इस पर बल दिया कि इस पंचाट को यथाशीघ्र अधिसूचित किया जाए। कर्नाटक के मुख्य सचिव ने कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर सरकार से आदेश प्राप्त होगा और जिसे अगले दो दिनों में सीएमसी को सूचित करना है इस समयावधि को बाद में एक हफ्ते तक के लिए बढ़ाया जा सकता है। तथापि, आज तक की तिथि के अनुसार कोई सरकारी सूचना नहीं प्राप्त हुई है।
15.उक्त निर्णय के विरूद्ध तमिलनाडु ने यह प्रार्थना करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक आवेदन दायर किया था कि उसकी खड़ी फसल को बचाने और पेयजल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर्नाटक द्वारा 12 टीएमसी जल छोड़ा जाए। किंतु दिनांक 20.01.2013 को सुनवाई के दौरान कर्नाटक ने तर्क दिया कि उनके चारों जलाशयों में उतना ही पानी है जो शेष बचे चार महीने अर्थात् फरवरी से मई के दौरान उसके पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए है। इसलिए, तमिलनाडु को आगे पानी छोड़े जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
16.दिनांक 4 फरवरी, 2013 को जारी उक्त मामले की सुनवाई में माननीय उच्चतम न्यायालय ने इसी दिन केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि वे यथाशीघ्र 5 फरवरी, 2007 के सीडब्लूडीटी द्वारा दिए गए अंतिम निर्णय को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित करे और किसी भी स्थिति में यह प्रकाशन 20 फरवरी, 2013 से अधिक न हो । तदनुसार ही, जल संसाधन मंत्रालय ने दिनांक 19.02.2013 को सरकारी राजपत्र में सीडब्लूडीटी के दिनांक 05.02.2013 के अंतिम निर्णय को प्रकाशित किया है।
17.अंतरराज्जीय जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 6(2) के अनुसार ‘’उपधारा (1) के अंतर्गत केन्द्र सरकार द्वारा सरकारी राजपत्र में इसके प्रकाशन के बाद इस अधिकरण का निर्णय का उच्चतम न्यायालय के आदेश अथवा डिक्री के समान ही प्रभावकारी होंगे।‘’ इसके अतिरिक्त अध्याय 8, इस अधिकरण के अंतिम निर्णय / आदेशों के कार्यान्वयन के लिए तंत्र में उल्लेख है कि “अंतरराज्जीय मंच को कावेरी प्रबंधन बोर्ड कहा जाएगा जिसे कावेरी जल विवाद अधिकरण के अंतिम निर्णय के अनुपालन और कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्थापित किया जाएगा।”
18.इसी बीच, 2007 के सिविल अपील संख्या 2456 में 2013 की आई.ए. संख्या 5 को तमिलनाडु सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दिनांक 18 मार्च, 2013 को दायर किया गया जिसमें उन्होंने दिनांक 5.02.2007 के अंतिम निर्णय/ पंचाट में निहित निर्देशों के अनुसार कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन के लिए भारत संघ के विरूद्ध निर्देश देने की प्रार्थना की गयी। इस संबंध में, दिनांक 1 मई, 2013 को जल संसाधन मंत्रालय की ओर से एक शपथपत्र दाखिल किया गया जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि दिनांक 19.02.2013 को सीडब्लूडीटी के निर्णय के प्रकाशन के बाद जल संसाधन मंत्रालय ने संबंधित मंत्रालयों के साथ परामर्श कर कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 10.05.2013 को 2013 के उपर्युक्त आईए संख्या 5 की सुनवाई के दौरान सीडब्लूडीटी के दिनांक 5.02.2007 के अंतिम निर्णय को कार्यान्वित करने के लिए एक पर्यवेक्षी समिति के गठन का निर्देश दिया जिसे अस्थायी उपाय के रूप में दिनांक 19.02.2013 को अधिसूचित किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायालय के दिनांक 10.05.2013 के आदेश में अन्य बातों के साथ साथ निम्न है:
“…दिनांक 19 फरवरी, 2013 की अधिसूचना के अनुसरण में अनुवर्ती कार्रवाई केन्द्र सरकार के सक्रिय विचाराधीन है । इसे अंतिम रूप दिए जाने तक कुछ व्यवस्था किया जाना होगा…
19.दिनांक 19 फरवरी, 2013 की अधिसूचना के तहत यथा अधिसूचित 5 फरवरी, 2007 के अंतिम आदेश के कार्यान्वयन के लिए एक पर्यवेक्षी समिति का गठन किया गया है। इस पर्यवेक्षी समिति में अध्यक्ष के रूप में जल संसाधन मंत्रालय के सचिव और संबंधित राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु , केरल और संघ शासित प्रदेश पुदुचेरी के मुख्य सचिवगण इसके सदस्य के रूप में होंगे।”
अब तक इस समिति की 8 बैठकें नई दिल्ली में दिनांक 1.06.2013, 12.06.2013, 15.7.2013, 8.11.2013, 28.9.2015, 12.9.2016, 19.9.2016 और 17.2.2017 हुई हैं।
कर्नाटक राज्य बनाम तमिलनाडु राज्य के बीच सिविल अपील संख्या 2456/2007 में आई.ए. संख्या 10 में एक आई.ए. को उच्चतम न्यायालय में दायर किया गया जहां माननीय उच्चतम न्यायालय ने भारत के महान्यायवादी को निर्देश दिया और उन्होंने यह बताया कि भारत संघ इसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार है ताकि दोनों ही राज्यों के बीच के गतिरोध को सकारात्मक रूप से समाप्त किया जा सके। विद्धान वरिष्ठ अधिवक्ता जो कर्नाटक राज्य के लिए आए, जैसा कि भारत के महान्यायवादी द्वारा संस्तुत किया गया, भारत के न्यायवादी द्वारा सुझाए जाने वाले भारत संघ के सक्षम प्राधिकारी के साथ चर्चाकरने के लिए उपलब्ध होंगे। तमिलनाडु राज्य ने भी अपनी सहमति प्रदान की है।
जैसा कि सिविल अपील संख्या 2456/2007 (कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य) में आई.ए. संख्या 10 में आई.ए. संख्या 12/2016 में माननीय उच्चतम न्यायालय के दिनांक 27.09.2016 के आदेश की अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में, इस मंत्रालय ने कावेरी जल को छोड़ने के संबंध में वर्तमान गतिरोध को सुलझाने के लिए कर्नाटक और तमिलनाडु के दिनांक 9.09.2016 को एक बैठक बुलायी। मंत्रालय ने कावेरी नदी से जल छोड़े जाने के संबंध में एकमत कराने के लिए दोनों ही राज्यों के मत परिवर्तन के लिए गंभीर प्रयास किए । मंत्रालय ने दिनांक *******2016 को भारत के विद्धान महान्यायवादी के माध्यम से माननीय उच्चतम न्यायालय को इस बैठक के परिणाम के बारे में सूचित किया।
कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन के संबंध में भारत के महान्यायवादी ने माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया। दिनांक 04.10.2016 को उच्चतम न्यायालय में इस मामले की सुनवाई के दौरान महान्यायवादी ने अपनी बात रखी और कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन के मुद्दे को थोड़े समय के लिए आस्थगित कर दिया। अंतरिम रूप में भारत के महान्यायवादी की सलाह पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस बेसिन में वास्तविक सच्चाई का आकलन करने के लिए कावेरी बेसिन क्षेत्र का दौरा करने के लिए एक तकनीकी दल के गठन का निर्देश दिया। तदनुसार हीं, इस मंत्रालय ने वास्तविक सच्चाई का आकलन करने के लिए सीडब्लूसी के अध्यक्ष श्री जी. एस. झा की अध्यक्षता और सदस्य के रूप में सीडब्लूसी के सदस्य श्री एस. मसूद हुसैन, सीडब्लूसी के मुख्य इंजीनियर श्री आर. के. गुप्ता, तमिलनाडु एवं कर्नाटक के मुख्य सचिवगण तथा तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल व पुदुचेरी राज्यों से एक एक मुख्य इंजीनियर को शामिल करते हुए एक उच्च स्तरीय तकनीकी दल का गठन किया। इस दल ने दिनांक 17.10.2016 को माननीय उच्चतम न्यायालय में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। तब तक कर्नाटक सरकार को 2000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया गया।
यह मामला सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय में दिनांक 18.10.2016 को आया जिनमें उच्च स्तरीय तकनीकी दल द्वारा सौंपे गयी रिपोर्ट को रिकार्ड पर लिया गया तथा इसे दिनांक 19.10.2016 के लिए इस मामले को सूचीबद्ध किया गया।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 09.12.2016 के अपने आदेश में निर्देश दिया कि ये सिविल अपील अनुरक्षणीय है और इस मामले को दिनांक 15.12.2016 के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया गया था जिसे अगले आदेशों तक आस्थगित कर दिया गया था। इस मामले की सुनवाई माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 04.01.2017 की गयी थी और 07.01.2017 को स्थगति कर दी गयी थी तथापि, इस अगली सुनवाई के लिए दिनांक 21.03.2017 को सूचीबद्ध किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 21.03.2017 को निर्देश दिया है कि दिनांक 4 जनवरी, 2017 को पारित अंतरिम आदेश को दिनांक 11.07.2017 को सुनवाई की अगली तिथि तक जारी रखा जाए।