रावी और ब्यास जल अधिकरण
- अधिशेष रावी और ब्यास नदी जल का तात्पर्य राजस्थान, उसके बाद पंजाब और जम्मू एवं कश्मीर द्वारा 3.13 एमएएफ के बंटवारा पूर्व उपयोग को छोड़कर उपलब्ध रावी ब्यास नदी जल है। अधिशेष रावी ब्यास नदी जल को सर्वप्रथम जनवरी, 1955 में मुख्य मंत्रियों के सम्मेलन में उसके बाद नवम्बर, 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के पश्चता दिनांक 24.3.1976 के भारत सरकार की सरकारी अधिसूचना और बाद में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के मुख्य मंत्रियों के बीच दिनांक 31.12.1981 के समझौते में आबंटित किया गया था। चूंकि ये मामले पुन: खुल गए इसलिए लंबे समझौते हुए जिसके परिणामस्वरूप भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी और शिरोमणी अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच दिनांक 24.7.1985 को पंजाब समझौता ज्ञापन (राजीव लोंगोवाल समझौता) पर हस्ताक्षर हुआ।
- नदी जल के बंटवारे के संबंध में इस समझौते के पैरा 9.0 में निम्नवत् कहा गया है:-
“9.0 नदी जल का बंटवारा
9.1 पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसानों को दिनांक 01.07.1985 के अनुसार रावी ब्यास नदी प्रणाली से जितना पानी इस्तेमाल कर रहे थे, उतना ही करना जारी रखेंगे। खपत उद्देश्य के लिए प्रयुक्त जल भी अप्रभावित रहेंगे। पानी के इस्तेमाल की प्रमात्रा का सत्यापन निम्न पैरा 9.2 में संदर्भित अधिकरण द्वारा किया जाएगा :
9.2 शेष जल में पंजाब और हरियाणा की हिस्सेदारी के के उनके दावे को एक अधिकरण में न्यायनिर्णयन के लिए भेज दिया जाएगा जिसका अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की जाएगी। इस अधिकरण का निर्णय छह महीने के भीतर दिया जाएगा और दोनों ही पक्षों पर बाध्यकारी होगा। इस संबंध में अपेक्षित सभी कानूनी और संवैधानिक कदम तुरंत उठाए जाएंगे।
9.3 एसवाईएल नहर का निर्माण कार्य जारी रहेगा। इस नहर के निर्माण कार्य को 15 अगस्त, 1986 में पूरा किया जाएगा।
- इस समझौते के अनुसरण में अंतरराज्जीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (आईएसआरडब्लूडी अधिनियम) को संशोधित किया गया और इस समझौते के क्रमश: पैरा 9.1 और 9.2 में विनिर्दिष्ट मामलों की जांच करने और न्यायनिर्णय करने के लिए अप्रैल, 1986 में एक तीन सदस्यीय रावी एवं ब्यास जल अधिकरण (आरबीडब्लूटी) का गठन किया गया । इस अधिकरण ने दिनांक 30.1.1987 को अपनी रिपोर्ट दी जिसे दिनांक 20.5.1987 को राज्यों को अग्रेषित कर दिया गया। आईएसआरडब्लूडी अधिनियम के खंड 5(3) के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा और राजस्थान और केन्द्र सरकार ने संदर्भों में इस रिपोर्ट के संबंध में कुछ स्पष्टीकरण /दिशानिर्देशों की मांग की जिसे दिनांक 19.8.1987 को अधिकरण को अग्रेषित कर दिया गया और उसके बाद से ये उनके विचाराधीन है।
- अप्रैल, 1987 में धारा 5(2) के तहत रिपोर्ट और निर्णय दिये गए। पक्षकार राज्यों द्वारा उक्त अधिनियम के अंतर्गत इस अधिकरण से स्पष्टीकरण की मांग की गयी। पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एग्रीमेंट के संबंध में के का प्रेसिडेंसियल संदर्भ दिया गया। माननीय उच्चतम न्यायालय ने प्रेसिडेंसियल संदर्भ को नकारात्मक रूप में घोषणा की। इसके अतिरिक्त हरियाणा सरकार ने इस मामले में का ओएस संख्या में की आईए संख्या दर्ज किया। यह मामला न्याय निर्णयाधीन है।
पंजाब विधान मंडल ने दिनांक 12.07.04 को पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट, 2004 (पीटीएए) को अधिनियमित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत इस समझौते सहित दिनांक 31.12.1981 को पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों द्वारा हस्ताक्षरित समझौते वाली रावी ब्यास नदी जल संबंधी सभी समझौते समाप्त हो गए और पंजाब सरकार को इन समझौतों से उत्पन्न किसी भी दायित्व से पूरी तरह मुक्त कर दिया। इस अधिनियम में यह व्यवस्था है कि विद्यमान प्रणाली के माध्यम से सभी विद्यमान और वास्तविक उपयोगिता संरक्षित और अप्रभावित रहेंगे। पीटीएए के संबंध में प्रेसिडेंसियल संदर्भ भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत दिनांक 22.07.2004 को किया गया था।