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    वंशधारा नदी जल विवाद

    1.उड़ीसा राज्‍य ने फरवरी, 2009 में अंतरराज्‍यीय नदी जल विवाद (आईएसआरडब्‍लूडी) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के अंतर्गत न्‍यायनिर्णयन हेतु अंतरराज्‍जयीय जल विवाद अधिकरण के गठन के लिए अंतरराज्‍यीय नदी बसंधरा नदी से संबंधित उड़ीसा और आंध्र प्रदेश सरकारों के बीच जल विवाद के संबंध में केन्‍द्र सरकार को एक शिकायत भेजी । केन्‍द्र सरकार को भेजी गयी शिकायत में उडीसा राज्‍य की मुख्‍य शिकायत मुख्‍य रूप से आंध्र प्रदेश सरकार के कटरागार में तेज बहाव वाली नहर के रूप में जाने जाने वाली बसंधरा नदी से निकाले जाने वाली नहर का निर्माण करने में आंध्र प्रदेश सरकार के कार्यकारी कार्रवाई और अंतरराज्‍जीय नदी बसंधरा के जल और घाटी के इस्‍तेमाल, बंटवारे और इसके नियंत्रण के संबंध में अंतराराज्‍यीय समझौता, समझ आदि की शर्तों को लागू करने में आंध्र प्रदेश सरकार की असफलता का प्रतिकूल प्रभाव है। इस शिकायत में उड़ीसा राज्‍य का मुख्‍य विवाद यह है कि तेज बहाव वाली नहर के कारण विद्यमान नदी तल सूख जाएगा और इसके परिणामस्‍वरूप भूजल को प्रभावित करते हुए नदी का स्‍थान बदल जाएगा। कटरागाडा और गोट्टा बांध में बसंधरा में जल की उपलब्‍धता के वैज्ञानिक मूल्‍यांकन और उपलब्‍ध पानी के बंटवारे के लिए आधार संबंधी मुद्दे को भी उठाया है।
    2.आईएसआरडब्‍लूडी अधिनियम, 1956 के उपबंध के अनुसार जब किसी जल विवाद के संदर्भ में किसी राज्‍य सरकार से धारा 3 के अंतर्गत किसी अनुरोध की प्राप्‍ति होती है और केन्‍द्र सरकार का विचार हो कि इस जल विवाद को समझौता कर हल नहीं किया जा सकता है तो केन्‍द्र सरकार ऐसे अनुरोध की प्राप्‍ति की तिथि से एक वर्ष के भीतर की अवधि में सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस जल विवाद के न्‍याय निर्णयन के लिए जल विवाद अधिकरण का गठन करेगी। तदनुसार ही, सचिव (जल संसाधन) ने दिनांक 24.04.2006 को इस विवाद के समझौता पूर्ण समाधान की संभावना खोजने के लिए नई दिल्‍ली में एक अंतरराज्‍जीय बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में दोनों ही राज्‍य इस पर सहमत हुए कि नदी जल का बंटवारा ओडिशा और आंध्र प्रदेश द्वारा 50 -50 के आधार पर किया जाएगा। दोनों ही राज्‍य इस पर सहमत हुए कि केन्‍द्रीय जल आयोग वर्ष 2005 तक जल के उपयोग द्वारा बसंधरा बेसिन के जल का पुनर्मूल्‍यांकन करेगा जिसके लिए संबंधित राज्‍य सरकार द्वारा शीघ्रता से आवश्‍यक उपयोगिता संबंधी आंकड़ा प्रदान करेगें। इस बैठक में जिन निष्‍कर्षों पर पहुंचा गया, के आधार पर केन्‍द्र सरकार इस विवाद के समझौतापूर्ण निपटान के निष्‍कर्ष के प्रति आश्‍वस्‍त है। इस नदी क्षेत्र पर बाढ़ प्रवाह नहर के प्रवाह की जांच सीडब्‍लूपीआरएस में मॉडल अध्‍ययन के माध्‍यम से की जा रही है।
    3.इस प्रक्रिया के अनुसरण में एक अन्‍य अंतरराज्‍जीय बैठक का आयोजन 5-6 दिसम्‍बर, 2006 को अपर सचिव (जल संसाधन) के स्‍तर पर किया गया इसमें पूर्व में अंतरराज्‍जीय बैठक के निर्णय पर की गयी अनुवर्ती कार्रवाई की समीक्षा की गयी। इसके अतिरिक्‍त, अपर सचिव (जल संसाधन) ने दिनांक 5-6 दिसम्‍बर, 2006 को उनके द्वारा की गयी बैठक में जो निष्‍कर्ष सामने आए पर अनुवर्ती कार्रवाई की समीक्षा करने के लिए 2 मार्च, 2007 को एक अन्‍य अंतरराज्‍जीय बैठक बुलायी। इस बैठक में, अपर सचिव (जल संसाधन) ने महसूस किया कि स्‍पष्‍ट तरीके से संबंधित राज्‍यों के अधिकारियों द्वारा बतायी गयी स्‍थिति के विपथन के मद्देनजर ओडिशा और आंध्र प्रदेश के मुख्‍य सचिवों के स्‍तर पर दूसरी बैठक का आयोजन करने के लिए सचिव (जल संसाधन) को अनुरोध करना उपयुक्‍त हो सकता है।
    4.इसी बीच, ओडिशा राज्‍य द्वारा दायर 2006 का डब्‍लू. पी. (सी) संख्‍या 443 30 अप्रैल, 2007 को माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय के समक्ष सुनवाई के लिये लाया गया। माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय से अनुरोध किया गया कि वे एक लंबे समय तक के लिए इस मामले को स्‍थगित करे ताकि केन्‍द्र सरकार समझौतापूर्ण निपटान के लिए एक बार पुन: प्रयास करे, और इसलिए इस मामले को स्‍थगित कर दिया गया। इसके मद्देनजर कि सचिव (जल संसाधन) ने दिनांक 18.5.06 को मुख्‍य सचिवों के साथ बैठक का प्रस्‍ताव किया और दिनांक 5.7.07 को पुन: मुख्‍य सचिव द्वारा जतायी गयी असमर्थता के कारण उड़ीसा सरकार को इसमें भागीदारी करनी थी। तथापि, यह बैठक अंतत: नहीं हो पायी क्‍योंकि उड़ीसा सरकार के मुख्‍य सचिव ने इस बैठक में भाग लेने की अपनी असमर्थता जाहिर की क्‍योंकि इस परियोजना के निर्माण में आंध्र प्रदेश सरकार को रोके जाने तक इस बैठक को किये जाने से कोई उद्देश्‍यपूर्ण हल नहीं निकलने वाला था।
    5.इसके अतिरिक्‍त, एक अंतरराज्‍जीय बैठक का आयोजन सीडब्‍लूसी के अध्‍यक्ष द्वारा इस संबंध में अनुरोध किए गए मॉडल अध्‍ययन पर चर्चा करने के लिए दिनांक 17.12.07 को सीडब्‍लूसी, सीडब्‍लूपीआरएस, पुणे, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के अधिकारियों के साथ किया गया। एक दूसरी बैठक अपेक्षित अतिरिक्‍त अध्‍ययन की अभिपुष्‍टि के लिए दिनांक 22.1.08 को की गयी।
    6.दिनांक 6.2.2009 की सुनवाई में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय ने एक जल विवाद अधिकरण को गठित करने के लिए केन्‍द्र सरकार को निर्देश दिया ।
    7.मंत्रिमंडल के अनुमोदन के साथ (दिनांक 25.06.2009) जल संसाधन मंत्रालय ने दिनांक 24.2.2010 को अधिसूचना के तहत बसंधरा जल विवाद अधिकरण (वीडब्‍लूडीटी) का गठन किया । इस अधिकरण का मुख्‍यालय नई दिल्‍ली में है।
    8.ओडिशा सरकार की शिकायत को इस अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत गठित एक अधिकरण को भेज दिया गया है।
    9.बाद में, माननीय उच्‍चतम न्‍यायाल के दिनांक 13.12.2013 के आदेश के अनुसरण में केन्‍द्र सरकार ने दिनांक 14.3.2014 के अधिसूचना संख्‍या सां. आ. 778 (अ) के तहत केन्‍द्र सरकार ने निर्णय किया कि आईएसआरडब्‍लूडी, अधिनिमय, 1956 की धारा 5 की उपधारा (2) के उपबंधों के अनुसार इस अधिकरण द्वारा रिपोर्ट और निर्णय देने के लिए तीन वर्ष की अवधि की गणना के उद्देश्‍य के लिए उक्‍त अधिकरण के गठन की प्रभावी तिथि 17.9.12 होगी। इसके अतिरिक्‍त, केन्‍द्र सरकार ने दिनांक 18.9.15 की अधिसूचना के तहत इस अधिकरण द्वारा रिपोर्ट और निर्णय सौंपने की अवधि को दिनांक 17.09.2015 से एक वर्ष की अवधि के लिए बढ़ा दिया है। इसके अलावा, उक्‍त अधिनियम की धारा 5 की उपधारा (2) के उपबंध के अनुसार केन्‍द्र सरकार ने दिनांक 16.09.2016 की अधिसूचना के तहत रिपोर्ट और निर्णय देने की अवधि को दिनांक 17.09.2016 से एक और वर्ष के लिए बढ़ा दिया।
    10.माननीय अधिकरण ने दिनांक 17.12.2013 को 2010 के आईए संख्‍या 1 में अपना निर्णय दिया जिसमें आंध्र प्रदेश सरकार को यथा प्रस्‍तावित अनुषंगी कार्यों के साथ साइड चैनल वायर के निर्माण की अनुमति दी और अन्‍य बातों के साथ साथ नदी बसंधरा पर तीन सदस्‍यीय पर्यवेक्षी प्रवाह प्रबंधन और विनियमन समिति के गठन का निर्देश दिया।
    11.ओडिशा सरकार ने दिनांक 17.12.2013 को विशेष अनुमति याचिका संख्‍या 3392/2014 दायर किया और वीडब्‍लूडीटी के अंतरिम आदेश के विरूद्ध स्‍थगन का आवेदन दिया। इस मामले में दिनांक 15.09.2014 को विधि कार्य विभाग से परामर्श किया गया जिसने अन्‍य बातों के साथ साथ सलाह दी कि चूंकि एसएलपी और स्‍थगन याचिका माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय के समक्ष न्‍यायनिर्णयाधीन हैं, इसलिए सामान्‍यत: विभाग द्वारा ऐसे कदम से दूर रहना चाहिए जिससे उच्‍चतम न्‍यायालय में लंबित एसएलपी का परिणाम बाधित हो सकता है।