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    सतलुज यमुना लिंक नहर परियोजना

    प्रकाशित तिथि: जनवरी 9, 2023

    पंजाब में करीब 121 किलोमीटर और हरियाणा में 90 किलोमीटर की दूरी तक सतलज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर बहती हैIजिसके द्वारा हरियाणा केऔसत वार्षिक हिस्सेदारीकेलिए रवि – ब्यासनदी के अतिरिक्त जल (1981 समझौते के अनुसार)के आबंटन (3.5 एम.ए.एफ.)मे से 3.45 एम.ए.एफ.का पूर्ति किए जाना परिकल्पित है । यह हरियाणाके 4.46 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई करेगीऔर पंजाब मे1.28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई का लाभ पहुंचाएगीतथा बिजली के मामले मेंदो बिजली घरों से कुल 50 मेगावाट बिजली उत्पादन होगा Iनहर का हरियाणा वाला भाग पूरा हो गया है। नहर के पंजाब वाले भाग को मार्च 1991 तक पूरा करने के लिए लक्षित किया गया था। जुलाई, 1990 तकजब कार्यों का एक बड़ा हिस्सा पूरा हो गया था, तब परियोजना से जुड़े एक मुख्य अभियंता एवं एक अधीक्षक अभियंता की 23.7.1990 को हुई हत्या के कारण नहर का कार्य रोकना पड़ा । कार्य दोबारा शुरू ना हो सकने के कारण हरयाणा सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में मूल सूट संख्या 6/1 99 6 के तहत तुरंत काम शुरू करने और एस.वाई.एल. नहर को पूरा करने के लिए एक प्रार्थना याचिका दायर किया।सुप्रीम कोर्ट ने 15/01/02 को अपने निर्णय मे पंजाब राज्य को निर्देश दिया कि वेएक वर्ष के भीतर नहर को पूरा करे अन्यथा भारत सरकार अपनी एजेंसियों के माध्यम से नहर का कार्य यथाशीघ्र पूरा करे ।

    पंजाब सरकारने सुप्रीम कोर्ट में 13.01.03 को एक मूल सूट नंबर 1/2003 दर्ज किया गया, जिसमें कुछ बदलती परिस्थितियों का हवाला दिया गया और नहर के निर्माण के दायित्व के विघटन / निर्वहन के लिए प्रार्थना की ।माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 4.6.2004 के अपने फैसले मे पंजाब की दायर याचिका को खारिज कर दिया और यू०ओ०आई० को निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर एसवाईएल नहर के पूरा होने के लिए अपनी कार्रवाई योजना को कार्यान्वित करने का निर्देश दिया। अनुपालन में, यूओआई ने सीपीडब्ल्यूडी को निर्माण एजेंसी के रूप में नामित किया और निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर एक सशक्त समिति भी स्थापित की।पंजाबसरकारको सीपीडब्ल्यूडी के साथ संपर्क में आने तथा नहर के कामों को सौंपने / काबिलनामे के विवरण को अंतिम रूप देने का अनुरोध किया । कुछ प्रारंभिक प्रतिक्रिया के बाद, 12.7.2004 को पंजाब राज्य ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट, 2004 अधिनियमित किया तथाअनुबंधदिनांक31.12.1981 तथा रवि-ब्यास जल से संबंधित सभी अन्य समझौतों को निरक्त कर मौजूदा सिस्टम के माध्यम से सभी वास्तविक उपयोगों की रक्षा की।पंजाब सरकार ने 13.07.04 को जल संसाधन मंत्रालय कोभी सूचित किया कि 31.12.1981 के समझौते के आधार पर कोई भी उठाया गया कदम कानून के विधायी जनादेश के खिलाफ होगा। केन्द्र सरकार ने 4.6.2004 के बाद के प्रगति को संज्ञान मे लाने हेतु तथा न्याय संगत उचित आदेश देने हेतु दिनांक 15.07.2004 को माननीय सुप्रीम कोर्ट मेएक आवेदन दायर किया।

    इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता के संबंध मे 22.7.2004 को प्रेसीडेंशियल रिफ्रेन्स दायर किया गया जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 10.11.2016 को अपनी राय दी और यह माना कि पी. टी. ए. ए. 2004 संविधान के प्रावधानोंके अनुसार नहीं है Iहरियाणा सरकार ने सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण के मामले में मूल सूट संख्या 6/1996 के संबंध मे एक आई.ए. नंबर 6/2016 दाखिल किया है और वह भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय में लंबित है।